अलिफ लैला की प्रेम कहानी-50
अबुल हसन की
माँ को बड़ी
चिंता हुई कि
इसे क्या हो
गया कि मुअज्जिन
की सजा की
बात सुन कर
यह और जोरों
से कहने लगा
कि मैं खलीफा
हूँ। उस ने
फिर कहा, बेटा,
सोच-समझ कर
बात करो, तुम्हारी
बातों को अगर
कोई सुनेगा तो
तुम्हें क्या कहेगा।
अबुल हसन को
अब बड़ा क्रोध
चढ़ा, वह बोला,
देख मक्कार बुढ़िया,
मैं ने तेरी
बदतमीजी बहुत सह
ली। अब अपनी
जबान बंद कर
ले। वरना मैं
उठ कर तुझे
इतना मारूँगा कि
सारी जिंदगी याद
करेगी। मैं खलीफा
हँ और खलीफा
रहूँगा। अब तेरी
जबान से एक
बार भी नहीं
निकलना चाहिए कि मैं
तेरा बेटा हूँ।
उस की माँ
यह देख कर
रोने लगी कि
लड़के का पागलपन
बढ़ता ही जा
रहा है। अबुल
हसन को यह
देख कर और
गुस्सा आया। वह
अपने बिस्तर से
उठा और उस
ने हाथों में
एक छड़ी ले
ली और बुढ़िया
से घुड़क कर
कहने लगा, बोल,
अब क्या कहती
है? मैं कौन
हूँ, खलीफा या
तेरा बेटा? उस
ने कातर दृष्टि
से देख कर
कहा, तुम मेरे
बेटे हो, खलीफा
कैसे हो जाओगे?
तुम अबुल हसन
हो। तुम्हें मैं
ने जन्म दिया
है और दूध
पिलाया है। खलीफा
के पद पर
तो सिर्फ हारूँ
रशीद हैं जिनकी
हम दोनों और
दूसरे लोग प्रजा
हैं। वे सारे
राजाओं के सर्वेसर्वा
हैं। अभी कल
ही उन्होंने कृपा
करके मेरे पास
एक हजार अशर्फियों
का तोड़ा भिजवाया
था।
अशर्फियों के नाम
पर अबुल हसन
को खलीफा होने
का और भी
निश्चय हो गया।
उस ने अपनी
माँ से कहा,
धूर्त स्त्री, तू
बड़ी कृतघ्न है।
कल मैं ने
ही अपने मंत्री
जाफर के हाथ
तेरे पास अशर्फियों
का तोड़ा भिजवाया
और आज तू
बेटा बना कर
मुझी पर कब्जा
करना चाहती है?
तेरी इस धृष्टता
का दंड तुझे
मिलना चाहिए। यह
कह कर उस
ने माँ का
हाथ पकड़ा और
डपट कर पूछा,
मैं कौन हूँ?
उस ने कहा,
मेरा बेटा। अबुल
हसन ने उसे
एक छड़ी जमाई।
वह इसी तरह
बार-बार पूछता
और जब बुढ़िया
उसे बेटा बताती
तो उसे छड़ी
मारता। बुढ़िया के चिल्लाने
से पड़ोसी घर
में आ गए
और उस के
हाथ से छड़ी
छीन कर कहने
लगे, तुम्हें क्या
हो गया है,
अबुल हसन? कोई
अपनी माँ को
ऐसे मारता है?
अबुल हसन ने
लाल आँखें करके
उन्हें देखा और
कहा, तुम क्या
बक रहे हो?
अबुल हसन कौन
है? पड़ोसी यह
सुन कर परेशान
हुए और बोले,
तुम्हीं हो अबुल
हसन, और कौन
होगा? हम तुम्हारे
पड़ोसी हैं। यह
तुम्हारा घर है
और यह तुम्हें
जननेवाली तुम्हारी माँ है।
अबुल हसन चीखा,
बकवास बंद करो
तुम लोग। मैं
इस दुष्ट स्त्री
को जानता भी
नहीं। मैं तुम्हें
भी नहीं जानता।
मैं खलीफा हूँ।
खलीफा के भी
कहीं पड़ोसी होते
हैं?
पड़ोसियों ने समझ
लिया कि अब
यह पागल हो
गया है और
इस से अधिक
बातचीत की तो
यह हम से
भी मारपीट करेगा।
उन में से
एक उस क्षेत्र
के दारोगा को
जानता था और
दौड़ कर उसे
बुला लाया। अबुल
हसन ने दारोगा
से डाँट-डपट
की तो उस
ने उसे दो-चार चाबुक
जड़ दिए और
जब अबुल हसन
भागने लगा तो
उसे सिपाहियों ने
पकड़ लिया। पुलिसवाले
उस के हाथों
में हथकड़ी और
गले में जंजीर
डाल कर ले
चले। रास्ते में
सिपाही उसे घूँसों
और थप्पड़ों से
मारते जाते थे
जैसे पागल आदमियों
को काबू में
रखने के लिए
किया जाता है।
बेचारा अबुल हसन
हैरान था कि
मेरा मस्तिष्क तो
ठीक है, यह
लोग मुझ से
उन्मत्तों जैसा व्यवहार
क्यों कर रहे
हैं। फिर भी
उस की समझ
में कुछ न
आया।
दारोगा ने उसे
हवालात में बंद
कर दिया। रोजाना
चालीस-पचास कोड़े
उस पर पड़ते।
तीन सप्ताह तक
उसे इसी हालत
में रखा गया।
दारोगा रोज उसे
पूछता कि तू
कौन है और
वह जब स्वयं
को खलीफा बताता
तो उस पर
कोड़े पड़ते। उस
की माँ रोज
हवालात में जा
कर देखती और
उस की दशा
पर आँसू बहाती।
अबुल हसन दिनोंदिन
सूखता जा रहा
था। रात-दिन
उसे मार और
अपमान से शारीरिक
और मानसिक कष्ट
रहता था। उस
की पीठ और
बाजुओं पर मार
के कारण काले-नीले निशान
पड़ गए थे
और जगह-जगह
से खाल भी
उधड़ गई थी।
वह बराबर रोता
रहता था। लेकिन
उस की माँ
की हिम्मत उस
से बात करने
की नहीं होती
थी कि कहीं
उस का पागलपन
बढ़ न जाए।
जब अबुल हसन
ने चुप रहना
शुरू किया तो
उस की माँ
ने सोचा कि
इस से बात
करूँ, शायद वह
कुछ सँभला हो।
उधर वह बराबर
सोचता था कि
मैं किस बात
को सपना समझूँ
और किसे सच।
वह सोचने लगा
था कि महल
और दरबार की
सारी बातें स्वप्न
ही होंगी। स्वप्न
की बात न
होती तो इतने
दिन मेरी
यह दुर्दशा क्यों होती
और मेरे हजार
आवाज देने पर
भी मेरी दासियाँ
और दास क्यों
न आते। साथ
ही वह यह
भी सोचता कि
अगर वह सब
सचमुच सपना था
तो मेरी आज्ञा
से मंत्री ने
मेरी माँ को
अशर्फियाँ क्यों दीं और
कोतवाल ने मुअज्जिन
को और उस
के साथियों को
दंड क्यों दिया।
वह बहुत सोचता
कि असलियत क्या
है। उस की
समझ में कुछ
नहीं आता था
किंतु इस द्विविधा
का परिणाम यह
हुआ कि उस
ने स्वयं को
खलीफा कहना छोड़
दिया।